तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas Ji ka Jivan Parichay | तुलसीदास जी का जीवन परिचय class 10 | Tulsidas biography in Hindi |
तुलसीदास जन्म | 13 अगस्त 1932 राजापुर |
मृत्यु | 1623 काशी |
पिता का नाम | आत्माराम दुबे |
माता का नाम | हुल्सी |
बचपन का नाम | रामबोला |
जन्म- हिंदी साहित्य के कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 13 अगस्त 1932 में बांदा जिले के राजपुर नामक ग्राम में आत्माराम दुबे जी के यहां हुआ था इनकी माता जी का नाम श्रीमती hulsi था ।
बचपन में उन्हें रामबोला नाम से बुलाया करते थे क्योंकि जन्म होते ही उन्होंने अपने मुख से राम नाम का उच्चारण किया जिससे उनका नाम राम बोला पड़ गया।
उन्होंने बचपन में ही गायत्री मंत्र का अच्छे से उच्चारण करना सीख लिया था।
इनके गुरु जी का नाम नरहरी दास जी था उन्होंने नरहरिदास जी से अपनी शिक्षा ग्रहण की उन्होंने अयोध्या में रहकर अपनी शिक्षा पूरी कीतुलसीदास जी की बुद्धि बड़ी प्रखर थी वह एक ही बार में गुरु मुख से जो सुन लेते थे उन्हें वह याद हो जाता था।
- यह राम जी के भक्त थे
- विशाल शौर्य शक्ति के उपासक थे
- Tulsidas ji को हिंदी साहित्य के महान कवियों के रूप मेंआज भी याद किया जाता है
तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास जी का विवाह -29 वर्ष की आयु में तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नामक कन्या से हुआ था।
29 वर्ष की आयु में हुआ था उनकी पत्नी का नाम रत्नावली थाउनकी पत्नी के कटु वचन के कारण तुलसीदास जी का नाम तुलसीराम से तुलसीदास जी हुआ।
तुलसीदास जी की भगवान श्रीराम से भेंट-
कुछ समय राजापुर रहने के बाद भी काशी चले गए और वहां के लोगों को राम कथा सुनाने लगे वह भगवान राम की दर्शन करना चाहते थे उन्होंने हनुमान जी का पता मालूम किया और हनुमान जी से मुलाकात की हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्री रघुनाथ जी का दर्शन कराने की प्रार्थना की हनुमान जी ने कहा तुम्हें चित्रकूट में राम जी के दर्शन होंगे।
इस पर तुलसीदास जी की चित्रकूट की ओर चल पड़े चित्रकूट पहुंच कर उन्होंने राम घाट पर अपना स्थान ग्रहण किया 1 दिन में प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि मैं मार्ग में श्री राम जी के दर्शन हुए उन्होंने देखा कि दो बड़े बहुत ही सुंदर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष बाण लिए जा रहे हैं तुलसीदास उन्हें देखकर बहुत ही वी कर्षण हो गए परंतु वहां उन्हें पहचान नहीं पाए तभी पीछे से हनुमान जी ने आकर उन्हें सब बताया कि वह रघुनंद रघुनाथ जी ही थे।
तुलसीदास जी को बहुत ही पश्चाताप हुआ बहुत ही दुखी हुए हनुमान जी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि तुम्हें प्रातकाल फिर से दर्शन होंगे मौनी अमावस्या को दिन में भगवान श्री राम पुनः प्रकट हुए उन्होंने बालक के रूप में तुलसीदास जी से कहा है बाबा हमें चंदन चाहिए क्या आप हमें चंदन दे सकते हैं हनुमानजी ने सोचा कहीं इस बार भी तुलसीदास धोखा ना खा जाए इसीलिए उन्होंने तोते का रूप धारण कर लिया और कहा।
Tulsidas Ji ka Jivan Parichay
तुलसीदास भगवान श्री राम जी की अद्भुत छवि को देखकर अपने शरीर की सुध बुध ही भूल गए भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चंदन लेकर अपने तो तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और भी अंतर्ध्यान हो गए।
तुलसीदास जी की रचनाएं – महाकवि तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथों की रचना की इन की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित दी गई है।
1.गीतावली 1571 2.कृष्ण गीतावली 1571 3हनुमान बाहुक 4.पार्वती मंगल 1582 5.रामचरितमानस 1574 6.विनय पत्रिका 1582 7. कवितावली 1612 8. रामलला 9.रामाज्ञा प्रश्न 10.जानकी मंगल.11. बरबै रामायण 12.दोहावली तुलसीदास जी की सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ रामचरितमानस रहा है रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है आज भी लोग इसे रामायण के रूप में पढ़ते हैं तथा सुंदरकांड का पाठ भी करते हैं इसमें राम जी के बारे में वर्णन किया गया है।
भाषा शैली- तुलसीदास जी ने अवधी तथा वृक्ष दोनों भाषाओं में अपनी रचनाएं लिखी हैं -जैसे रामचरितमानस -अवधी भाषा में लिखा गया है रामचरितमानस में प्रबंध शैली का प्रयोग किया गया है भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही दृष्टि उसे तुलसीदास जी का काव्य अद्वितीय जबकि कवितावली गीतावली विनय पत्रिका आदि रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है सभी अलंकारों का प्रयोग करके तुलसीदास जी ने अपनीरचनाओं को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया है।
हिंदी साहित्य में स्थान –
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कभी रहे हैं इन्हें समाज आज भी महाकवि के रूप में जानता है तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के अमर कवि हैं जो युगों युगों तक हमारे बीच में जीवित रहेंगे।
Transfer certificate application