Roll of Woman in Indian Society Essay 2021 In Hindi – Nari he to kal hai Essay / Bhartiya Nari Tab Aur Ab Essay in Hindi/ Woman Power Essay 2021 In Hindi/Nari Abala nahi Sabla Hai Essay 2021 In Hindi/ Roll of Woman in Indian Society Essay 2021 In Hindi for Class 10th and 12th Students. (भारतीय नारी तब और अब पर निबंध/नारी का दुखद जीवन/नारी शक्ति पर निबंध हिंदी में, नारी अबला नही सबला है/ भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध)
रूपरेखा –
- प्रस्तावना
- प्राचीन भारतीय नारी
- मध्य काल में नारी की स्थिति
- आधुनिक नारी
- उपसंहार
‘’ मैं कवि की कविता कामिनी हूं, मैं चित्रकार का रूचिर चित्र। में जगत नाट्य की रसाधार अभिलाषा मानव की विचित्र।।”
Roll of Woman in Indian Society Essay 2021 In Hindi
प्रस्तावना- सृष्टि के आदिकाल से नारी की महत्ता अक्षुण्य रही है । नारी में जगत सर्जन करने की क्षमता है। उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असंभव है। समाज के रचना विधान में नारी को मां, पत्नी, पुत्री आदि का दर्जा प्राप्त है। वह सम परिस्थितियों में देवी है तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी है। नारी समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है। उसके बिना समस्त जीवन निराधार है।
प्राचीन भारतीय नारी– वैदिक काल में नारी जीवन के स्वरूप की व्याख्या करें तो हमें ज्ञात होगा कि वैदिक काल में नारी समाज में महत्वपूर्ण कार्य करती थी। पुरूषो के साथ मिलकर ही सामाजिक, धार्मिक आध्यात्मिक क्षेत्र में कार्य करती थी । रेशमा और लोपामुद्रा आदि अनेक नारियों ऋग्वेद के सुत्रों की रचना की थी। रानी कौकई ने युध्य भूमि में जाकर राजा दशरथ की सहायता की थी । रामायण काल में भी नारी की महत्वता रही है। सीता, अनुसूया इस युग के आदर्श नारी हुई। महाभारत काल में नारी पुरुष के साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी। इस युग में नारी समस्त गतिविधियों के संचालन का केंद्र बिंदु थी। द्रोपती, गांधारी तथा कुंती इस युग की शक्ति थी।
आदिकाल में नारी की स्थिति– सृष्टि के आदिकाल से ही नारी जीवन के स्वरूप पर दृष्टि डाले तो हमें ज्ञात होगा कि जीवन में कुटुंब, सामाजिक, और आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक सामाजिक सभी क्षेत्रों में नारी की अपेक्षा पुरुषों का आधिपत्य रहा है, उसने नारी की स्वतंत्रता का अपहरण कर उसे पराधीन बना दिया । सहयोगिनी व सहचारी के स्थान पर उसे अनुचरी बना दिया और स्वयं उसका मालिक, स्वामी, नाथ और साक्षात ईश्वर बन गया। इस प्रकार समाज के रचना विधान में नारी की स्थिति अत्यंत दयनीय बनकर रह गई है । उसकी जीवनधारा रेगिस्तान और हरे-भरे वृक्षों के बीच से प्रतिपल प्रवाहमान है।
मध्य काल में नारी की स्थिति –
मध्य काल के आते-आते समाज में नारी की स्थिति दयनीय हो गई थी । वे पुरूषो के साथ मिलकर ही सामाजिक कार्यों में भाग लेती थी। मध्यकाल में शास्त्रो की काम दृष्टि से नारी को बचाएं जाने के प्रयास किए जाने लगे। वह पुत्री के रूप में पिता पर, पत्नी के रूप में पति पर, और मां के रूप में पुत्र पर आश्रित होती चली गई। समाज सामान्य नारी को प्रारंभ से अंत तक बंधनो में जकडता चला गया।
मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में ‘’ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी’’
मध्य काल में नारी का जीवन इतना बेकार बन गया था। की तुलसी सूर और कबीर जैसे कवियों ने उसकी संवेदना और सहानुभूति में दो शब्द तक नहीं कहे। कबीर ने नारी को महा विकार नागिन आदि कहकर उसकी घोर निंदा की । तुलसीदास ने नारी को डोर, गवार और पशु के समान कहा । ‘’ढोर गंवार शूद्र पशु नारी यह सब तारण के अधिकारी’’
आधुनिक काल में नारी की स्थिति-
आधुनिक काल के आते-आते समाज में नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप से जागृत हुआ। बंगाल में राजा राममोहन राय एवं उत्तर भारत में स्वामी दयानंद सरस्वती ने नारी को पुरूषो के अनाचार की छाया से मुक्त करने की क्रांति का बिगुल बजाया।
सुमित्रानंदन पंत ने तीव्र स्वरों में मांग की ‘’मुक्त करो नारी को मानव चीर बंदिनी नारी को युग युग की निर्गम कारा से जननी सखी प्यारी को’’
आधुनिक काल में नारियों ने सामाजिक राजनीतिक आर्थिक धार्मिक साहित्य सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ कर कार्य किया विजयलक्ष्मी पंडित, सुचित्रा कृपलानी, कमला नेहरू इंदिरा गांधी सरोजिनी नायडू सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी वर्मा आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है।सरकार ने भी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात समाज में नारी की स्थिति सुधारने हेतु प्रयास किए हैं।
उपसंहार – हमें वैदिक काल से लेकर आज तक नारी के जीवन के स्वरूपों का आवास मिल जाता है। वैदिक काल में किनारी निशुल्क समर्पण विश्वास शक्ति आदि गुरु का परिचय दिया पूर्व मध्यकाल की नारी ने इन्हीं गुणों का अनुसरण करके अपने अस्तित्व को बचाए रखा उत्तर मध्यकाल में अवश्य नारी की स्थिति देनी हो गई परंतु आधुनिक काल में आते-आते उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को बिना प्राप्त कर लिया वैदिक काल में भगवान शिव की ही कल्पना अर्धनरेश्वरी के रूप में की गई यह नारी शत्रु पूज्यंते रमंते तत्र देवता जहां का अनुभव होता है वहां मौजूद होने वाली समस्त क्रियाएं सफल हो जाती है नारी पूजा के योग्य है वह घर की ज्योति है 1 गए कि साक्षात लक्ष्मी है आशा है कि भारतीय नारी का उठान भारतीय संस्कृति की परिधि में है वह पश्चिम की नारी का अनुसरण करके अपनी मौलिकता का परिचय दें
“मानवता की मूर्ति वती तू भाव भाऊ भूषण भंडार! दया क्षमा ममता के आकार विश्व प्रेम की है आधार!!”
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